एक ख्याल

एक ख़्याल आया था रात को,
चाँदनी रंग का लिबास ओढ़े !

धीरे से खटखटाया मेरे दरवाज़े पे,
और आ कर बैठ गया सिरहाने !

कुछ देर देखता रहा मुझे एक टुक,
फ़िर बोला बड़ी तहज़ीब से !

सवालिया लेहज़े में लेने लगा,
मुझसे गुज़री रातों का हिसाब !

वो रात के जब तेरे सभी,
ख़त जला दिए थे मैंने !

और वो जब तुझसे न मिलने की,
क़समें खाईं थी मैंने !

एक वो भी जब तेरी यादों को,
दिल की चौखट से उल्टे पाँव मोड़ा था !

अना की काली ओढ़नी को मैंने,
सर पर अपने ओढ़ा था !

आज ये रात है कि तेरी दीद की,
दुआएँ किए जाता हूँ मैं !

साग़र में भरके अना अपनी,
घूँट घूँट पिए जाता हूँ मैं !

वो ख़याल तेरा अब दूर खड़ा,
\’कृष्णा\’ की हालत पे हँस रहा है !

ये दिल है के तेरी जुदाई में भी,
वस्ल का दम भर रहा है !

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