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मैं नारी हूँ तो क्या… | एक और नयी कविता | नारीशक्ति

मैं नारी हूँ तो क्या… | एक और नयी कविता

दोस्तों आजकल के समाज मे नारियों का सम्मान एक बिडंबना बनता जा रहा है एक ओर कुछ नारियाँ अपने सम्मान का गलत प्रयोग करके अच्छे खासे, भोले लोगों को फसां देती है और एक तरफ बुरे लोग अच्छे खासी, भोलि लड़कियों का शोषण करते है चंद लोग ही सही परंतु दोनों स्थिति समाज के लिए एक बड़ी परेशानी के रूप में बढ़ती जा रही है।
एक नारी बढ़ते हुये अत्याचारों के विरुद्ध खड़े होकर कहती है –



मैं नारी हूँ तो क्या…

मैं नारी हूँ तो क्या
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?
मैं नारी हूँ तो क्या
बेवजह मेरे सिर पर आरोप दोगे?

हाँ बोझ सहकर थक गई
क्या कभी मैंने तुम्हें कुछ कहा,
सहन कर पीड़ा तुम्हे मरहम लगाया
कोई और है जो मुझ तक सह सका!

आरोपो के बौछारों से सीना मेरा छलनी करते हो
मुझपर लांछन क्यों झूठे लगाए बेवजह
सीने पर उठाकर रखा तो क्या
मुझे गर्त में तुम फेंक दोगे?

मैं नारी हूँ तो क्या
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?
मैं नारी हूँ तो क्या
बेवजह मेरे सिर पर आरोप दोगे?

क्यों इल्ज़ाम देते तुम थकते नही हो
क्यों आगे बढ़ने से रोका है?
जरूरत भी है, हम ही मज़बूरी
ये बताओ, ये सच है कि धोखा है?

अपने मत्थे पर ले नही सकते
तुमसे किसने कहा कि बेटियां बोझ हैं?
अरे क्या रक्षा करोगे पालकर तुम
ये तुम्हारे बस का नही रोग है!

तुम तो मारकर गर्भ में ही,
दुनिया मे आने से रोक दोगे।।
मैं नारी हूँ तो क्या…
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे।।

भूखे भेड़ियों के बीच
सहमी हिरनी सी रहती हूँ।।
कभी अपने घर की शेरनी
गीदड़ों से छिपती फिरती हूँ।।

पूजा करके मंदिर में माँ की
फिर बेटी को सताते रहते हो।।
क्यों डरते नही हो क्या? काल से
काली को जगाते रहते हो।।

तुमने हमने ही जन्म दिया
फिर हमको ही तुम रोक दोगे?
मैं नारी हूँ तो क्या…
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?

कभी तुम्हारे अय्याश इरादों में
कभी तुम्हारे फरेबी वादों में।।
कभी काट खाने वाली निगाहों में,
कभी लील जाने वाली हवसी आंखों में।।

कभी दरिंदगी भरी चालो से,
कभी प्रेम के झूठे पट्ट पढ़ाकर।।
कभी फुसला ले जाते हो
कभी मीठी बातों से बहलाकर।।

कितने शिकार बना लिए तुमने
फिर हमको सड़क पर फेंक दोगे!
मैं नारी हूँ तो क्या…
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?

मैं ममता हूँ, दया हूँ, श्रद्धा हूँ,
मैं सिय हूँ, मीरा हूँ, राधा हूँ,
मैं प्रेम के कोमल भावो में छिपने वाले
नाममात्र एक अनुराधा हूँ।

तुम भूल रहे हो पहचान मेरी
चंडी रूप मर्यादा हूँ
मैं लक्ष्मी, काली बनकर
तुम्हारे मृत्यु की परिभाषा हूँ?

तुम भय व्याप्त करके
क्या ये रुख भी अपनी ओर मोड़ लोगे?
मैं नारी हूँ तो क्या…
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?

पुरुषप्रधान देश तुम्हारा
नारी असुरक्षित रहती है
बाहर की क्या बात करूं मैं
घर में तेरी माँ बहन तुझसे डरती है!

स्त्री पूज्य है कह करके
स्त्री का ही हवन चढ़ाते तो
तुम नामर्द हो सालो
किस मुँह से खुद को मर्द कहते हो?

इतनी सी बात नही समझ सकते तुम
तो क्या मुझे कहने से रोक लोगे
मैं नारी हूँ तो क्या…
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?

ये भेदभाव क्यों अपना।
जब नारी ने ही तुम्हे जन्म दिया।।
नारी धरती, नारी नदिया।
नारी ने ही तुम्हें प्राण पिलाया।।

सब दुख सहकर भी जो!
तुम्हारे दुख को धरती है!!
मैं पूछती हूँ फिर वही नारी!
क्यों तुम्हारी बलिवेदी पर चढ़ती है?

इतनी सी बात पर तुम!
खिसियाकर खम्भा नोच लोगे!!
मैं नारी हूँ तो क्या..!
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?

क्यों तुम्हारे बुरी नियत की शिकार मैं!
निष्पाप हूँ, फिर भी बहिष्कार मैं!!
कैसा दोगला समाज है ये!
करता निष्पक्ष न्याय, फिर भी अस्वीकार मैं!!

क्यों मेरे साथ ही सब होता है !
क्यों मेरा दिल ही रोता है !!
क्यों लहू के आंसू मैं बहाती है !
क्योंकि चाहकर भी कुछ कह न पाती हूँ?

क्यों मुझे बेवफा लोग कहते हैं,
क्यों मैं ही दूसरे घर को जाती हूँ
मैं नारी हूँ तो क्या…
क्यों इतने अत्याचार सहती जाती हूँ?

क्यों नही लड़ती मैं अपने अधिकारों के लिए,
क्यों नही लड़ती अन्याय के खिलाफ
क्यों चुप चाप सी बैठी हूँ मैं,
क्यों पाल रही हूँ आस्तीन में सांप?

कहने को मुख संवेदना देते हैं सभी
हृदय से क्या कभी समझोगे?
मैं नारी हूँ तो क्या,
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे…?

मैं ही क्यों कलंक?
मैं ही क्यों नाशिनी?
मैं ही क्यों डायन ?,
मैं ही क्यों पापिनी ?

अरे कुछ संस्कार बेटो को भी
कहो कि नारी का सम्मान करें,
कब तक हमसे ही कहोगे
शाम से पहले घर आ जाना!

ये निशा भी तो नारी है
फिर क्यों पापियों का साथ देती है,
क्या ये भी अत्याचारी है
क्यों पापियों के पाप में भाग देती है?

क्या हृदय छलनी नही होता उस माँ का
जब अपने बेटे के बारे में ऐसा सुनती है,
तो फिर क्या गलती उस माँ की भी है,
जो बेटे के लिए राह चुनती है!

मैं सब कुछ हूँ, तुम्हे मालूम नही
शिव भी अर्धनारीश्वर कहलाते हैं,
बिन नारी तुम कुछ भी नही
ये बात तुम्हे, हम बताते है।

हम करेंगे अपनी मर्ज़ी का
हम लड़ेंगे अपनी बाजुओं से,
जिसमे दम हो सामने आओ
क्या तुम मुझे रोक लोगे?

मैं नारी हूँ तो क्या…
कुछ भी मेरे मुँह पर थोप दोगे?
मैं नारी हूँ तो क्या..
बेवजह मेरे सिर पर आरोप दोगे?

पूरी कविता पढ़ने के लिए धन्यबाद ।
हम आशा करते है आपको ये कविता पसंद आई होगी।
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3 Comments

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