कलयुगी दुनिया

मतलबी दुनिया जमाना कलयुगी,
आदमी को रौंदता हर आदमी !

और ज़्यादा और ज़्यादा चाहिए,
बुझ न पाएगी कभी ये तिश्नगी !

है जलन, लालच, बनावट हर तरफ,
अब नहीं रिश्ता कोई भी कीमती !

तोड़ते पल में भरोसा यूँ ही बस,
जो बनाने में लगी थी ज़िंदगी !

झूठ का है बोलबाला आजकल \’कृष्णा\’
सच सिसकता ही दिखे अब हर गली..।


read more poem click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *