वो एक ख़्वाब जो पूरा न हो सका

नींदें मुझे रातों में जब,
मेरी ना होकर सताती थी !

उसकी तस्वीरें देखता मैं,
वही मुझे सुलाती थी !

करता खुद से मैं उसकी बातें,
वो जैसे सुन जाती थी !

मेरी वीरानगी की चादर में,
दीवानगी भर जाती थी !

ख्यालों में रखकर उसको,
ख़्वाब जो मैं सजाता था !

\’अहमद\’ के ख़्वाबों में आकर वो,
यूं सीने से लग जाती थी !

साथ बिताता उसके मैं,
वो वक्त यूँ कट जाता था !

हर पल में वो मेरे अपनी,
जो यादें देकर जाती थी !

उससे मिलने की ख़्वाहिश में,
मैं हर दिन उठता जाता था !

उससे मिलकर ही रोज़ शाम,
मैं चैन की नींद सो पाता था !

दिन उसकी शामें, वो मुझसे,
रातें भी बतियाती थी !

मैं उसका बन चूका था,
और वो मुझे अपना बनाती थी !

इक पल न इक भी दिन,
जो मेरा उस बिन बिता जाता था !

अंधेरों में मैं उसकी,
परछाइयों से टकराता था !

बुलाती थी वो रोज़ मुझे,
मैं रोज़ उससे मिल आता था !

लौटकर उसके पास से भी,
मैं वही कहीं छूट जाता था !

जान से बढ़कर खुद से ज्यादा,
चाहने लगा था मैं उसको !

सौंप कर दिल को उन हाथों में,
मारने लगा था मैं जो खुद को !

जान मेरी आँसू में बहकर,
रोज़ रुलाती रातें मुझको !

प्यार हुआ था मुझे या कोई,
प्यारी बहुत बीमारी थी…!

नींदें मुझे रातों में जब,
ना होकर सताती थीं !

उसकी तस्वीरें देखता मैं,
वही मुझे सुलाती थी…!

वो एक ख़्वाब जो पूरा न हो सका !
एक तू जिसे मै कभी पा न सका !

Love poem in Hindi

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