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हेलो, दोस्तों कैसे हो आप लोग, आज मैं आपको अपनी एक कविता सुनाने जा रहा हूँ जिसका टाइटल है पहाड़ों से इश्क़ ! आइये शुरू करते है
ये दिल अब पहाड़ों पर ही लगता है,
बहुत समझाया इसे,
पर फिर भी तुम पर मरता है,
घूमता रहा मै खानाबदशों कि तरह,
निकला था तुम्हारी तलाश में,
कुछ तो जादू सा चलाया तुमने,
बांध कर रख दिया मुझे मेरी ही सोच में,
अब तो लगने लगा था,
कि शायद तुम एक कल्पना हो,
जो मेरी सोच तक सिमटी है,
पर फिर भी यह दिल मानने को त्यार नहीं था,
जब भी तुम्हे ये आंखें निहारा करती,
ऐसा लगता कि मानो बस एक तुम ही तो हो,
जिसे देखने के लिए ये आंखें नज़रें उठाया करती हैं,
ये समय भी कैसा सा है
रेत की भांति हाथों से निकल जाता है,
और फिर शेष रह जाते हैं यादों के पहाड़,
जानता हूं ये पल और समय बदल गया है,
अब मैं मै नहीं रहा जो पहले था,
पर ऐसा क्या है तुम्हारे पास तुम रूबरू वैसी ही हो,
जैसा मै सोचा करता था, जैसे तुम्हे पहली बार देखा था,
ये दिल अब भी तुम्हारे लिए धड़कता है,
बहुत समझा लिया इसे,
फिर भी ये कमबख्त तुम्ही पर मरता है,
तो दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी ये कविता? कमेंट करके जरूर बताये और अपने दोस्तों में शेयर करे |
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