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हैं पुरानेपन के शिकार अब भी हम,
सो जब चाय सामने आती है,
तो मुस्कान आ ही जाती है…!
…
उसे देख कर घुमा लू भले ही नज़रें अपनी
पर जो आनी होती है
गले में वो घुटन आ ही जाती है
…
सोचते हो कि हम सुबह में सोते क्यों हैं
रातें जब खो जातीं हैं
तो नींद कभी भी आ ही जाती है
…
सुना है अब भी वो नक़ाब लगाती है
फिर भूल गई होगी शायद
उसकी आँखों से पहचान में वो आ ही जाती है..!
…
ऐसा नहीं है कि वो मुझसे प्यार नहीं करती
हाँ ये तो है कि कभी-कभी
उसकी आदतों में बेबफाई आ ही जाती है
…
उसको पसन्द है राजा की कहानी
सो कभी-कभी ही सही
उसकी बातों में सियासत आ ही जाती है..!
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sad poetry in Hindi
sad poetry in Hindi
✍️ Arjun Sha
[…] पुरानेपन के शिकार अब भी हम […]